कोयतोड़ गोंडवाना महासभा बिछुआ छिन्दवाड़ा के द्वारा रावण पेन दहन पर रोक लगाई जाने के लिए ज्ञापन दिया गया
कोया पुनेम गोंडियन गाथा में वर्णित है:-अमुरकोट पूर्वजों की कहानी सुनिए, जिसको अमरकंटक कहते हैं, नरद गोद से गोन्दोला जनों की उत्पत्ति हुई है। गोन्दोला से फूलशाह हुए और फूलशाह के राजा विवरशाह के ससुर, यमशाह, कुबेर शाह जो लंका कोट के राजा थे, राजा कुबेर की पुत्री शकुंतला उत्पन्न हुई। जिससे इस देश का नाम भरत हुआ। विवरशाह के साथ शकुंतला की शादी हुई, यमशाह, कुबेर शाह दोनों के बीच एक ही पुत्री थी। आगे वंश चलाने की कोई उम्मीद नहीं हुई, तब अपनी पुत्री शकुंतला को लंका कोट का राज्य सौपा गया, क्योंकि आगे कोई संतान नहीं थी, राजा विवरशाह और शकुंतला से सात पुत्र उत्पन्न हुए, जेष्ठ पुत्र महारावण नाना यमशाह एवं कुबेरशाह के लंका कोट का उत्तराधिकारी हुई, नाना के द्वारा रावण को लंका कोट का राजा बनाया गया, इस बात को संपूर्ण विश्व संसार जानता है। राजा रावण, कुंभकरण, विभीषण आदि सात भाइयों ने अखंड तप की, प्रकृति के प्रभाव से जग विजेता हुए, क्योंकि प्रकृति के पूजक थे। रक्षक पंडा पुजारी कहलाते थे और विश्व विख्यात थे महाराजा रावण शंभू शेक के अंतिम चेले थे, सभी ज्ञान शंभू से प्राप्त की जंतर-मंत्र में निपुण थे। बड़ा देव की कृपा से रावण अति महाबलवान था, प्रकृति के पुजारी थे 10 मंत्र शंभू ने दिलाया था। जिससे 10 दसकंधर लोग कहते थे। दशो दिशाओं के ज्ञाता थे, रावण के 10 सर 20 भुजा नहीं थे, इस मंत्र के कारण गुमराह किया। रावण को संपूर्ण संसार जानता है, आर्य लोग ईर्ष्या भाव के कारण रक्षक के स्थान पर राक्षस कह दिया, राजा रावण 52 गढ़ों के राज्य देखभाल उनकी रक्षा किया करते थे, संपूर्ण गोडियन समाज महाराज रावण को आदर व सम्मान करते थे। गोंडवाना लैंड भुईया में प्रथम शंभू शेख, दूसरा राजा बलि और तीसरा महाराज रावण गोंडवाना के मुख्य राजा थे। ज्ञापन में मुख्य रूप से उपस्थित सदस्यों में जिसमे उपस्थित, मुरलीधर उइके,मुकेश धुर्वे, सियाराम इनवाती, प्रकाश कोड़ोपे,अनिल धुर्वे, दीपक धुर्वे,शिवराम इनवाती, प्रकाश कडोपे,अभिषेक मरकाम, दुर्गेश टेकाम,अजय कुरचाम, सोनू सलामे, दीपक, इनवाती,संजय कुमार, सागर धुर्वे, रोहित इनवाती,प्रमोद कुमरे, घुड़नलाल, आदि रहे।