
महाराजा छत्रसाल की जयंती …..
(संकलन देवेंद्र वर्मा छिंदवाड़ा)
बुंदेलखंड के एक प्रतापी योद्धा जिन्होंने किया मुगल शासक औरंगजेब से युद्ध वो थे राजा छत्रसाल, जिन्हें बुंदेलखंड का राजा भी कहा जाता है। इनका नाम इतिहास के पन्नो में दर्ज है. ये एक बहुत ही महान एवं वीर योद्धा थे.
बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल का जन्म 4 मई 1649 को पहाड़ी ग्राम में हुआ। उनकी माता जिनका नाम लालकुंवारी था, वहीं पिता का नाम चंपत राय था। चंपत राय बहुत वीर और प्रतापी राजा थे। खास बात ये थी कि, जब भी चंपत राय जंग के मैदान में उतरते थे, तब हमेशा लालकुंवारी उनके साथ रहा करती थी। वो हमेशा तलवार बाजी का अभ्यास करती थी, जब छत्रसाल पेट में थे तो योद्धा से जुड़ी कहानियां उन्हें सुनाती थी। माता-पिता के निधन के बाद उनके बड़े भाई अंगद बुंदेला का निधन भी हो गया। जिसके बाद उन्होंने अपने पिता की आज्ञा मानकर परमार वंश की कन्या देवकुआंरी से विवाह कर लिया।
महाराजा छत्रसाल इतिहास (History)
छत्रसाल जो की प्रतापी योद्धा थे, जिन्होंने महाराज शिवाजी की तरह अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की इच्छा जाहिर की थी। जिसके कारण उन्होंने अपना जीवन साहस और जोखिमभरा जीने का निर्णय लिया। बुंदेलखंड की भूमि पर अपने शौर्य और पराक्रम के साथ उन्होंने विंध्याचल की पहाडियों पर भी अपने पराक्रम का जरिया दिखाया।
महाराजा छत्रसाल शिक्षा
महाराजा छत्रसाल जी ने सारी चीजें अपने माता-पिता से सीखी क्योंकि वो हमेशा उन्हीं से इस बात का ज्ञान लिया करते थे। हालांकि राजा छत्रसाल को युद्ध के बारे में शिक्षा और जानकारी प्राप्त करने के लिए उन्हें उनके मामा साहेबसिंह धंधेरे के पास देलवारा भेजा गया।
महाराजा छत्रसाल एवं औरंगजेब युद्ध
राजा छत्रसाल ने औरंगजेब के साथ युद्ध में विजय प्राप्त की। दरअसल औरंगजेब ने रणदूलह के नेतृत्व में 30 हजार सैनिकों की टुकड़ी छत्रसाल के पीछे भेजी। लेकिन उसका भी कोई लाभ नहीं हुआ। उन्होंने अपने कौशल और युद्ध से मुग्लो को पराजित कर दिया। क्योंकि छत्रसाल को मालूम हो गया था कि, मुगल उसे घेरने कि रणनीति तैयार कर रहे हैं। लेकिन उन्होंने उससे पहले ही उनकी रणनीति पर पानी डाल दिया। इससे पहले छत्रसाल के पिता चंपत राय मुगलों से धोखा खा चुके थे। इसलिए छत्रसाल ने अपने समय में कोई गलती नहीं की. उन्होंने मुगल सेना से गढ़ाकोटा, धामौनी, रामगढ़, कंजिया, मडियादो, रहली, रानगिरि, शाहगढ़ आदि कई जगाहों पर लड़ाई लड़ी थी। जिसके बाद उनकी शक्ति बढ़ती चली गई और वो राज करते गए।
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड के राजा
राजा छत्रसाल राष्ट्र प्रेम और अपने वीरता के बारे में जाने जाते हैं। इसी के कारण वो बुदेलखंड के राजा बने। सन 1670 में छत्रसाल की मातृभूमि की स्थिति बिल्कुल अलग थी। वहां मुगलों ने अपना हक जमाया हुआ था। जिसके लिए छत्रसाल ने एक रणनीति बनाई ताकि उनसे बुंदेलखंड ले सके। जिसके बाद उन्होंने औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजा बुंदेलखंड में अपना हक जमाया और उसे हासिल किया।
महाराजा छत्रसाल वंशज
महाराजा छत्रसाल का बुंदेलखंड के राजा थे, जिनका वंश मस्तानी, शमशेर बहादुर पहला, हर्दे साह, अली बहादुर पहला, भारती चंद एवं जगत राय ने आगे बढ़ाया. साथ ही उन्हें इस बात की सीख भी दी गई कि अपने शान को बरकरार कैसे रखा जाता है, साथ ही किस प्रकार दुश्मनों का सामना किया जाता है।
महाराजा छत्रसाल मृत्यु कब हुई (Death)
महाराजा छत्रसाल की मृत्यु उनकी 82 साल की उम्र में 20 दिसंबर 1731 को हुई. उनकी मृत्यु के वक्त वे मऊसहानिया में हुई. अपनी मृत्यु से पहले छत्रसाल जी ने अपनी सभी संपत्ति एवं राज्य अपने सभी पुत्रों में बराबर – बराबर बांट दिए थे. ताकि उनके पुत्रों को आगे जाकर किसी तरह की कोई तकलीफ ना हो। और किसी प्रकार का कोई युद्ध पैदा ना हो।
महाराजा छत्रसाल की समाधि
महाराजा छत्रसाल की समाधि छतरपुर में स्थित है। ये समाधि धुबेला झीले के पास बनी हुई है। जहां पर आप आसानी से पहुंच सकते हैं। साथ ही उनकी समाधि के साथ वहां पर बहुत आलिशान मकबरा भी तैयार किया गया। जिसमें पहुंचने पर कई सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। इसमें कई बड़ी गुंबद तो कई छोटी गुंबद बनी हुई है।
महाराजा छत्रसाल की जयंती
महाराजा छत्रसाल की जयंती 4 मई को मनाई जाती है। इस दिन रानी लालकंवारी ने एक वीर योद्धा और प्रतापी राजा को जन्म दिया था, जो बड़े होकर बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल के नाम से जाने गए। जिन्होंने अपने युद्ध का प्रदर्शन दिखाकर मुगलों को पराजित किया और विजय हासिल की।
महाराजा छत्रसाल का किला
महाराजा छत्रसाल का किला छतरपुर के मऊ सहानिया में है। जो कि छतरपुर की सीमा पर पड़ता है। यहां पर घूमने के लिए खूबसूरत तालाब और संग्रहालय देखने को मिलेगे। यहां पर राजा छत्रसाल की मूर्ति को रखा गया है। उनके शस्त्र आदि, ताकि वहां पहुंचे लोग उनके बारे में जान सके।
महाराजा छत्रसाल का साहित्य के संरक्षक
महाराजा छत्रसाल को साहित्य संरक्षक काफी पसंद था। जिसके कारण हमेशा उनके दरबार में प्रसिद्ध कवि रहते थे। कवि भूषण उनमें से एक थे। इसके अलावा लाल कवि, बक्षी हंशराज आदि भी वहां मौजूद रहते थे। इसलिए उनके ऊपर एएक पंक्ति भी तैयार की गई।
छता तोरे राज में धक धक धरती होय। जित जित घोड़ा मुख करे उत उत फत्ते होय॥
महराजा छत्रसाल के जीवन पर आधारित कुछ फ़िल्में भी टीवी पर आ चुकी है. जिसे आप डाउनलोड करके या ऑनलाइन सर्च करके देख सकते हैं. उन फिल्मों में बुंदेलखंड के राजा महाराज छत्रसाल की कहानी दर्शाई गई है, किस तरह से उन्होंने मुगलों को धूल चटाई थी. और बुंदेलखंड हासिल कर वहां के राजा बने थे ।
संकलन:-एडवोकेट देवेंद्र वर्मा छिंदवाड़ा पूर्व बस्ती प्रमुख छत्रसाल प्रभात शाखा लोनिया बस्ती छिंदवाड़ा