अंगद का पैर हटाने में असफल रहे रावण के सभी दरबारी और योद्धा
रामलीला के नौवें दिन रामेश्वर स्थापना और अंगद-रावण संवाद।
बैतूल। श्री कृष्ण पंजाब सेवा समिति के तत्वाधान में आयोजित रामलीला के नौवें दिन 10 अक्टूबर को रामेश्वर स्थापना और अंगद-रावण संवाद रामलीला के मुख्य आकर्षण रहे। आदर्श श्री इंद्रलोक रामलीला मंडल खजूरी जिला सीधी के पारंगत कलाकारों ने अपने अभिनय से इन दृश्यों को जीवंत कर दिया।
रावण के दरबार में शांति दूत के रूप में पहुंचे अंगद ने रावण को सलाह दी कि वह श्रीराम से बैर त्याग कर सीता माता को लौटा दे, जिससे उसका कल्याण हो सके। रावण ने अंगद की इस सलाह को ठुकरा दिया। तब अंगद ने रावण के दरबार में अपने पैर जमाते हुए चुनौती दी कि अगर दरबार में कोई उसका पैर हटा दे, तो श्रीराम की सेना बिना युद्ध किए ही लौट जाएगी। रावण के सभी दरबारी और योद्धा अंगद का पैर हटाने में असफल रहे। अंत में, स्वयं रावण ने जब अंगद का पैर हटाने का प्रयास किया, तो अंगद ने कहा, मेरा पैर क्यों पकड़ते हो, जाकर श्रीराम के चरण पकड़ो, तभी तुम्हारा कल्याण होगा।
अंगद के लौटने के बाद युद्ध की तैयारी शुरू हो गई। हनुमान जी ने लंका से लौटकर प्रभु श्रीराम को सूचना दी कि माता सीता लंका में ही हैं। यह सुनकर राम की सेना लंका पर चढ़ाई करने के लिए तैयार हो गई। लेकिन सबसे बड़ी बाधा समुद्र था, जिसे पार करने के लिए श्रीराम ने समुद्र से मार्ग देने की प्रार्थना की और रामेश्वर की स्थापना कर पूजा-अर्चना की। जब समुद्र ने मार्ग नहीं दिया, तो लक्ष्मण तैश में आ गए और एक ही तीर से समुद्र को सुखाने की बात कही। श्रीराम ने उन्हें शांत किया और इस कार्य के लिए नल-नील को आगे भेजा, जिनकी विशेषता थी कि वे जिस भी पत्थर को छूते, वह पानी में नहीं डूबता। नल-नील ने पत्थरों पर श्रीराम।लिखकर उन्हें समुद्र में डालना शुरू किया, और लंका तक पुल तैयार हो गया।
इसके बाद भी रावण को अंतिम अवसर देने के लिए अंगद को दूत के रूप में मैत्री प्रस्ताव लेकर लंका भेजा गया, लेकिन रावण ने इसे ठुकरा दिया और युद्ध की दुंदुभी बज उठी। रामलीला के इस शानदार प्रदर्शन को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी, जो देर रात तक मंचन का आनंद लेती रही।